इज़्ज़त का फालूदा

मियां इज़्ज़ार बेग़ होते थे एक चचा अपने
बड़े लोगों में बैठते खूब खर्च किया करते

शाही ठाठ गए हो गयी पैसे की किल्लत
पढ़े लिखे कम थे लिख लेते थे सिर्फ खत

काम कई खोले मगर कोई भी नहीं फला
लखनऊ शहर में कोई भी काम नहीं बना

चचा ने किया तब पेशा रबड़ी फालूदा का
स्वाद रास आया तो धंधा भी चल निकला

बैनर चचा ने दूकान का कुछ ऐसे बनवाया
‘हो जाए जी रबड़ी और इज़्ज़त का फालूदा’

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