कॉर्पोरेट विक्रम बेताल

हा हा हा
विक्रम पहचाना
मैं बेताल
ले मैं फिर आ गया हूँ
पूछने सवाल

तू मेरे प्रश्नों का उत्तर
अपनी बुद्धिबल और
तर्क से यूँ ही देता रह

मुझे तेरा जवाब
अच्छा लगा तो
तेरे कंधों की सवारी
छोड़ दूंगा

अन्यथा तेरी खोपड़ी के
कर दूंगा टुकड़े टुकड़े

तो सुन

एक सरकारी ऑफिस था
एक ईमानदार व्यक्ति वहां
मैनेजर के पद पर आया

वह कर्मशील था इसलिए
काम करने से
उसे आनंद मिलता
और हर दिन वह
कुछ नया करता

बॉस का मगर वह
चहेता नहीं था
अपितु बॉस उससे
जलता था

जहाँ सभी कर्मचारी
करते थे जी हुज़ूरी
वहां इस व्यक्ति की थी
काम करना मज़बूरी
वह सिर्फ अपने काम से
काम रखता और बाकी
सबको ठेंगे पर

अप्रैज़ल का जब
समय आया यानी
बॉस के हाथ में
पॉवर बम आया

कॉम्पिटिशन अधिक था
मैनेजर का भगवान ही
मालिक था

चमचों की जी हुजूरी
आखिर रंग लाई
प्रतिद्वंदी की सैलरी
यह कह कर बढ़ाई गयी
कि ऑफिस के
सभी बाकी टार्गेट्स में में वह
अधिक जुझारू पाई गयी

मैनेजर दुखी तो था
मगर उसने
हौसला नहीं छोड़ा
वह चतुर भी था

प्रतिद्वंदी का नाम
शांति था
मैनेजर का नाम कर्म तथा
बॉस का नाम परिणाम था

शांति बहुत सुन्दर थी
अपितु मैनेजर कर्म ने
शांति के घर जाकर
उसके घरवालों से उसका
हाथ मांग लिया
तथा शादी करली

इस प्रकार कर्म को
अप्रैज़ल का फायदा और
शांति दोनों मिल गए
परिणामस्वरुप उसने
बॉस परिणाम को
ठेंगा दिखा दिया

यह कथा सुनने के बाद
तू बता विक्रम कि

कर्म बड़ा है
परिणाम बड़ा है
या शांति बड़ी है

अतिशीघ्र बता वर्ना
तेरी खोपड़ी के
कर दूंगा टुकड़े टुकड़े

विक्रम बोला सुन बेताल
इस कथा में कर्म बड़ा है
जो अपने कर्म में
था निपुण और चतुर भी

अप्रैज़ल सही ना भी मिले
तो कर्म करने के बाद
शांति मिलना स्वाभाविक है

हा हा हा विक्रम
वैरी गुड मगर
में तो मजाक कर रहा था

मैं तुझे छोड़कर
कही नहीं जाने वाला
तेरे पास विद्या है
में तेरी पीठ पर सवार हूँ
इसलिए मैं विद्यापीठ हूं

यह कहकर बेताल
ही ही ही करते हुए
शून्य की ओर उड़ गया
और गायब हो गया

विक्रम के मुख से
स्वतः निकला

इसकी भेड़ की…..

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