बॉस की विदाई
चल भग जा रे कुत्ते कि अब ये देस हुआ बेगाना
लौट जहाँ से आया है तेरा यहाँ नहीं है ठिकाना
हर कुत्ते का दिन है आता तेरा भी था आया
तूने किसी को काटा तब किसी का पैर चबाया
ग़म न कर जो किरदार ने तुझको ही लिया खाया
एक दिन गू चखता है जग में हर एक कौवा सयाना
चल भग जा रे कुत्ते कि अब ये देस हुआ बेगाना
लौट जहाँ से आया है तेरा यहाँ नहीं है ठिकाना
छी छी छी छी..
शहर में जाना मानो जी का जंजाल जी जी जी जी
शहर में रहना है मुहाल बस मज़बूरी है जी जी
ट्रैफिक का शोर सड़क पर हमेशा टी टी पी पी
आपाधापी हर ओर मची रहती सांय सांय सी सी
बेवज़ह नोक झोंक आपस में चीं पौं चीं चीं चीं चीं
कुत्तों की भोंक गलियों में भों भों प्याऊं भीं भीं
अंटियॉं की चुगली गुपचुप मिन मिन मीं मीं मीं मीं
बदनामों की गली की गूंज ताक दिन धीं धीं धीं धीं
कचरे के लगे ढेर पर गन्दगी बदबू छी छी छी छी
बिना बात की हंसी ठट्ठा कहकहे हा हा ही ही
शराबियों के बहकते बोलों का शोर हूँ हूँ हीं हीं
पुलिस की गाडी और एम्बुलेंस टेऊँ टेऊँ टी टी
गुज़रती है ज़िन्दगी शहर में घिसट घिसट घी घी
उखड जातीं हैं साँसे आखिर में सांय सांय सीँ सीँ
रेल में…
मैं अकेला ही चल दिया मंज़िले जानिब रेल में
औकात अपनी इस दफा घर पर छोड़ कर गया
छूट गया था कभी जो हिन्दोस्तां सवारी डिब्बे में
उस सरजमीं से मैं रूबरू होकर गुज़रा
तरक्की लफ्ज़ जैसे हो मेरी नज़रों का पर्दा
हक़ीक़त अब भी गलीच है कुछ नहीं बदला
खचाखच डिब्बे में कदम रखने की जद्दोज़हद
कहीं धमकी कहीं मारपीट हर तरफ शोर तोबा
सीट घेरने वाले अक्सर ही जल्द उतर जाते हैं
मुझे सीट मिल गयी तो मैं आम से ख़ास हो गया
इस सफर ने ये बात बखूबी समझा दी है
पानी जितना भी मैला हो ठंडक नहीं छोड़ता
मारम पिट्टी
शर्मा जी पार्क में जावें नित जावें हैं दोड़ लगाएं
अच्छा खावें बढ़िया पहने सेहत पे यों ध्यान लगाएं
एक दिनअनहोनी बीती यों सुन लीजो सब कान लगाय
गाय पार्क में घास चरत थी गार्ड रहे लाठी से भगाय
डर कें गइयाँ सरपट भागें शर्मा जी रहे रस्ते जाएँ
एक गाय भगी जा रई थी शर्मा जी उसे देखत जाएँ
लघुशंका से हो रहे पीड़ित सोचें कब हल्के हैं जाएँ
रहे किनारे हल्के है रहे ध्यान भगति गइयाँ आएं
खूब बचे शर्माजी कह रहे धीरे से वे रहे मुस्काय
तभी अचानक बिजली कौंधी दुनिया तेज घुमती जाये
भगति गाय की आये चपेट में शर्मा जी दिये पटक उठाय
होश किनारे लग गए भाई शर्मा जी पड़े झाड़िन में जाय
हे ईश्वर क्या आफत आयी, देखें तो गैया दौड़ी जाय
उठ के खड़े भये शर्मा जी सबेरे अंग थे दुरुस्त पाए
शर्मा जी फिर हलके भये दुश्मन पर रहा गुस्सा आय
भृकुटि तानी नथुने फुले यों प्रतीत हो परलय आय
शर्मा जी भागे गैया पीछे हाथ में डंडा लियो उठाय
आज बचेगी नाय सारी तू बिना बात थोक दियो हाय
गाय जिभ फेरत थी मुंह पर शर्मा जी गर्माते जांय
दूर ते फेंक मार दियो डंडा सींग देख पिचई है जांय
गाय तनिक मस्ती में जो झूमी शर्मा जी डरे भागत जांय
घिग्गी ऐसी बंधी बेचारे सांस भी घर पे लयी है आय
अब जब सोवेन हैं शर्माजी या लघुशंका उन्हें सताय
सपने में भी गाय दिखत है लघुशंका आपे है जायं
एक दो तीन
क्या सिस्टम है क्या खानपान है क्या रूटीन है
अँधी दौड़ में दुनिया भग रही एक दो तीन है
नेगीजी अलग बीवी रहती अलग बच्चे तीन हैं
क्या सिस्टम है क्या खानपान है क्या रूटीन है
अँधी दौड़ में दुनिया भग रही एक दो तीन है
नौकरी में सेहत दांव पे लग गई दवा लीन है
क्या सिस्टम है क्या खानपान है क्या रूटीन है
अँधी दौड़ में दुनिया भग रही एक दो तीन है
बीवी के ताने आखिर हमें तुम क्या दीन हैं
क्या सिस्टम है क्या खानपान है क्या रूटीन है
अँधी दौड़ में दुनिया भग रही एक दो तीन है
बेटा विदेश में बूढ़ा इकला बैठा गमगीन है
क्या सिस्टम है क्या खानपान है क्या रूटीन है
अँधी दौड़ में दुनिया भग रही एक दो तीन है
तो हो जाय !
बारिश में मन खिल खिल जाय
चलो चलो कहीं सैर पे जायें
सड़क किनारे घुमें बैठें
पियें नुक्कड़ वाली चाय
अदरक की सोंधी महक लिए
बनती जब मनभावन चाय
खुशबु इलाइची की आये
पियो गरम होठ जल जाये
सुड़ुप सुड़ुप कर पी डालो
गला साफ़ दिल खुश हो जाए
साथ पकौड़े हों तो भई वाह
खालो पेट चाहे निकल आये
बारिश चाय पकोड़े का संगम
मन के दरवाज़े खुल जाएँ
तो क्यों हो जाए फिर
नुक्कड़ की एक कटिंग चाय
कम्बख्त इश्क़
बेटी को हमने अच्छा पढ़ा तो लिया है
होशियार हैं वैसे तो एमबीए कर लिया है
एक उलझन है मगर कैसे बताएं
कम्बख़्त ने दिल कहीं लगा लिया है
हमारे मज़हब में इज़ाज़त नहीं है
जात बिरादरी में होनी शर्मिंदगी है
बाप हुं मैं बहुत चाहता हुं उसको
मगर मनमानी कैसे करने दूँ उसको
एक रिश्ता नज़र में है अच्छा घर है
उनका ओहदा भी हमसे ऊपर है
कई बार समझाया है पगली को
गौर तो कर घरवालों की कही को
कहती है अब्बा जिंदगी का सवाल है
जब दिल ख़ुश नहीं तो जीना मुहाल है
क्या करूँ अब यही सोचा करता हूँ
बातें जो बनेंगी उनसे डरता हूं
इश्क भी कम्बखत क्या शै बना दी है
ख़ुदी और ख़ुदाई दोनों भुला दी है
दिल कुछ चाहता है कहीं और मन है
समझ से परे है यह जो उलझन है
बिन पानी के गोलगप्पे
सुबह रात सब गम कायनात
फ़्रस्ट्रेशन चप्पे चप्पे
नयी चाट हो रोज़ खिलाते
तौबा लारे लप्पे
कब तक खाएं हम तेरे
बिन पानी के गोलगप्पे
सेंसिटिव हैं बन्दे हम
एक दम सीधे सच्चे
वादे तुम्हारे झूठे सब
चटनी से मीठे खट्टे
चट करने की ठानी तुम
तब देने लगे हो गच्चे
कब तक खाएं हम तेरे
बिन पानी के गोलगप्पे
रोज़ जगाते नयी प्यास
हर दिन देते नयी आस
गोली चूरन की से मुंह में
पानी आये फर्स्ट क्लास
मिट गए हम तेरे वायदों पे
रह गए हैं हक्के बक्के
कब तक खाएं हम तेरे
बिन पानी के गोलगप्पे
बहुत रायता फ़ैल गया है
कल पर टलते टलते
जो होगा हम सह लेंगे
गिरते पड़ते उठते
कब हो जाने नौ मन तेल'
राधा रानी फिर नच्चे नच्चे
कब तक खाएं हम तेरे
बिन पानी के गोलगप्पे
मैडम
झलक दिखा कर चल दी मैडम
स्माइल देकर चल दी मैडम
तनिक मटक बाल झटक कर
पैर पटक कर चल दी मैडम
खुशबु आयी जब पास आई थी
अच्छा लगा वो जब मुस्कुराई थी
बातों बातों में मेरे काँधे अपना
काम टिकाकर चल दी मैडम
चलो ऐसे ही खेलें
चलो ऐसे ही खेलें
ना तुम हमसे बात कहो ना हम बोलें
चलो ऐसे ही खेलें
आते जाते मिल जाये गर
अंजान रहें जब नैन मिलें
कसम है तुमको जो याद करो वो मुलकात
मन मिलने को आतुर होगा
दिल की धड़कन बढ़ जायेगी
आंखें गीली मत करना ना जब चैन मिले
चलो ऐसे ही खेलें
ना तुम हमसे बात कहो ना हम बोलें
सच कहें तो अच्छा नहीं लगता था
तुम जो हर बार सच छुपाकर
एक नया बहाना देते थे हर बार
चुप रहते पर अच्छा नहीं लगता था
उस पर तुर्रा की कहीं तुम्हें बुरा न लगे
यही सोचकर जाने देते थे जार बार
सह जाते थे चाहे अच्छा नहुँ लगता था
अब पानी सर से गुज़र गया है
तुम्हें मुबारक सब खेल जो खेले
अब हम भी तैयार चलो ऐसे ही खेलें
ना तुम हमसे बात कहो ना हम बोलें
चलो ऐसे ही खेलें