दही की थैली

कैसे बचें गन्दगी से
मरेंगे सब बीमारी से

दुकानदार फुर्सत में बैठा
नाक में ऊँगली डालकर
देखते देखते चार पांच बाल
तोड़े और कर दिए बेघर

लाख खुदा से मिन्नत की
पोछ ले वो हाथ पैंट से ही
बेगैरत ने उसी हाथ से
दही की थैली पकड़ा दी

कहाँ से खोलूं थैली बापू
इतने हाथों की गन्दी ये
कैसे बचें गन्दगी से
मरेंगे सब बीमारी से

वो पूछते हैं

कैसे मारें तुम्हें वो मुझे पूछते हैं
ज़हर दें तुमको या घोंप दें खंजर
ख्वाहिश हो गर कहो वो पूछते हैं

मैंने हंसकर कहा नहीं कोई तमन्ना
बस एक चाह है मत करना मना
वो हैरां हुए आये आँखों में सवाल
कैसे समझाऊं अपने दिल का हाल

कैसे मरोगे वो मुझसे पूछते हैं
ज़हर दें तुमको या घोंप दें खंजर
कोई ख्वाहिश तो कहो वो पूछते हैं

कह दो उन्हें ज़हर चाहिए न खंजर
दाल दो हम पर प्यार की एक नज़र
मेरा दर्द समझो, मेरी ख़ामोशी सुनो
दम निकलने से पहले प्यार में रंग दो

कैसे मरोगे वो मुझसे पूछते हैं
ज़हर दें तुमको या घोंप दें खंजर
कोई ख्वाहिश तो कहो वो पूछते हैं

मैं ऐसे जी लेता हूँ

मैं खुद ही खुद से तेरी बातें करता हूँ,
फिर तु बनकर खुद से तेरी कह लेता हूँ।
तू नहीं है तो मैं अब ऐसे ही जी लेता हूँ II

बिन तेरे अब दिन भी रात सा लगता है,
हर पल तेरा नाम खुद से कहता रहता हूँ।
तू नहीं है तो मैं अब ऐसे ही जी लेता हूँ II

तेरी यादें मन की राहों में बसा करती हैं,
तेरे बिना अधूरा हूँ हरदम खोया रहता हूँ ।
तू नहीं है तो मैं अब ऐसे ही जी लेता हूँ II

तेरे बगैर ये दिल उदास रहता है,
तेरी तस्वीर में खुद को खोजा करता हूँ
तू नहीं है तो मैं अब ऐसे ही जी लेता हूँ II

मैं खुद ही खुद से तेरी बातें करता हूँ,
फिर तु बनकर, तेरी खुद से कह लेता हूँ।
तू नहीं है तो मैं अब ऐसे ही जी लेता हूँ II

तेरी यादों में डूबा रहता हूँ हर पहर,
तेरी खुशबू से हर लम्हा महका लेता हूँ।
तू नहीं है तो मैं अब ऐसे ही जी लेता हूँ II

तेरे बगैर अधूरा हूँ, मालूम है मुझको
तू मिलेगी फिरसे ये ख्वाब सजा लेता हूँ
तू नहीं है तो मैं अब ऐसे ही जी लेता हूँ II

मैं खुद ही खुद से तेरी बातें करता हूँ,
फिर तु बनकर, तेरी खुद से कह लेता हूँ।
तू नहीं है तो मैं अब ऐसे ही जी लेता हूँ II

उधार की ज़िन्दगी

आज फिर किराने वाले ने उधार नहीं दिया,
मज़बूर वो मज़लूम यूं गलत राह चल दिया।

उम्मीद की रौशनी कुछ कम सी हो गई,
ख्वाहिशों का ज़नाज़ा उठाये वो चल दिया

जिंदगी के रंग आज फिर फीके हो गए।
लहू का रंग ज़िन्दगी में भरने वो चल दिया

सपने जो देखे थे उन सबको चुराना पड़ा,
टूटे हुए कांच पर पाँव रख वो चल दिया

अंजान सफर, ज़िन्दगी जंग बनकर रह गयी
अंजाम लाज़मी था जिस्म में छलनी बन गयी

दर्द के बाद चीख फिर एक नयी उम्मीद
कोई आवाज़ गूँजती रही कानों में उसके

पर हर अँधेरी रात के बाद सवेरा आता है,
हर दर्द के बाद खुशियों का सेहरा आता है।

दिल को संभाल, मुश्किलें आती जाती हैं,
आज नहीं तो कल, राहें अपनी बनती हैं।

उधार की है ज़िन्दगी तू हौसला मत खोना,
ये सफ़र आखिरी है अब आराम से तू सोना।

गरमी तेरी वाट लगे

गरमी तेरी वाट लगे,
झुलस गया जग सारा
दीवार से तेरी खाट लगे,
गरमी तेरी वाट लगे,

हवा गरम है पानी गरम
सड़कें भी पड़ गयीं नरम
सूर्य देवता गुस्से में हैं
आफत ये कब होगी कम
जोहड़ सूखे खेत जले

गरमी तेरी वाट लगे,
झुलस गया जग सारा
दीवार से तेरी खाट लगे,
गरमी तेरी वाट लगे,

राही जल गये धुप तले
पिघले मन, सपने धुंधले।
पानी से न प्यास बुझे,
पंखे में न चैन पड़े
त्राहि त्राहि गगन तले

गरमी तेरी वाट लगे,
झुलस गया जग सारा
दीवार से तेरी खाट लगे,
गरमी तेरी वाट लगे,

किस बात का बुरा लगा
तमतमाई हो इतना क्यों
गुहार लगाएं तुमसे हम
चरण पड़ें माफ़ी दे दो
तुझे हमारी हाय लगे

गरमी तेरी वाट लगे,
झुलस गया जग सारा
दीवार से तेरी खाट लगे,
गरमी तेरी वाट लगे,

चांदी का चूल्हा

इन्क्रीमेंट लग गयी है अब सब ठीक हो जायेगा
सैलरी बढ़ गयी है अब बिगड़ा नीक हो जायेगा
लग्ज़री जिन मजबूरों की ज़रुरत बन गयी है
उन गरीबों का चूल्हा अब चांदी का हो जायेगा
इन्क्रीमेंट लग गयी है अब सब ठीक हो जायेगा

बीवी को चमकता हुआ हीरे का हार दिलवाएंगे
रूठी होगी कई रोज़ से अब उसको मनाएंगे
बच्चा ज़िद करता होगा के विदेश घूमने जाएँ
सरकारी दामाद अब लंदन का वीसा लगवाएंगे
खर्चों की टेंशन में कुछ तो रिलीफ हो जायेगा
इन्क्रीमेंट लग गयी है अब सब ठीक हो जायेगा
लग्ज़री जिन मजबूरों की ज़रुरत बन गयी है
उन गरीबों का चूल्हा अब चांदी का हो जायेगा
इन्क्रीमेंट लग गयी है अब सब ठीक हो जायेगा

आज के समय में ज़नाब हर शख्स गरीब है
गरीबों से भी ज़्यादा तो खुशनसीब गरीब है
गाड़ी हमेशा छोटी और घर पुराना लगता है
हवस का जाल और भी उलझने लगता है
भूख ज्यों ज्यों बढ़ेगी पेट और बड़ा हो जायेगा
इन्क्रीमेंट लग गयी है अब सब ठीक हो जायेगा
लग्ज़री जिन मजबूरों की ज़रुरत बन गयी है
उन गरीबों का चूल्हा अब चांदी का हो जायेगा
इन्क्रीमेंट लग गयी है अब सब ठीक हो जायेगा

घायल शेर हैं बुज़ुर्ग

ज़िन्दगी के शिकार हुए ये घायल शेर हैं बुज़ुर्ग,
इनको सहलाओ, बहलाओ, ये चल पड़ेंगे ख़ुद।

कभी इनके साम्राज्य का डंका बजा करता था
परिवार कभी इनकी मुट्ठी में हुआ करता था

कभी जीत हर कदम इनके कदम चूमा करती थी
इनके इरादों से जंग की तकदीर लिखा करती थी

इन्हें मत समझो कमज़ोर, ये अनुभव की गागर हैं,
इनकी बातें, इनके किस्से, गागर में बंद सागर हैं।

इनके चेहरे पर झुर्रियाँ हैं, पर दिल में हैं उमंगें,
इनके संग रहकर देखो, मिलेंगी खुशियों की तरंगें।

इन्हें आदर दो, इन्हें मान दो, ये हमारे प्रेरक हैं,
इनके आशीर्वाद से ही, सब मुश्किलें आसान हैं।

ज़िन्दगी के शिकार हुए ये घायल शेर हैं बुज़ुर्ग,
इनको सहलाओ, बहलाओ, ये चल पड़ेंगे ख़ुद।

बचपन की यादें

मेरे बचपन में तुझे छूना चाहता हूँ,
एक बार तेरे संग खेलना चाहता हूँ।

वो हँसी, वो खेल, वो नटखट बातें,
वो नटखट सपनों की सुन्दर रातें
उन सपनों में फिर से खोना चाहता हूँ,
एक बार तेरे संग खेलना चाहता हूँ।

वो बेफिक्र दिन, मासूम पल छिन
परियों की कहानी वो छुट्टी के दिन
बेफिक्र उन दिनों में डूबना चाहता हूँ।
एक बार तेरे संग खेलना चाहता हूँ।

जो हासिल किया है वो बेमोल है
तूने जो खुशियाँ दीं, वो अनमोल हैं,
छोटी खुशियों में खुश होना चाहता हूँ
एक बार तेरे संग खेलना चाहता हूँ।

अलविदा

कुछ चलता है मन के भीतर
ज़ज़्बात हिलोरें लेते हैं
कुछ क़दमों को है खींच रहा
जब तुम से विदा हम लेते हैं

जब घडी बिछड़ने की आई
मन में हलचल सी छाई
साथी, संग, सहकर्मी सब,
यादें बनकर रह जाएंगी।

वो मीठी बातों की गोली,
काम के संग हंसी-ठिठोली,
पल जो सारे संग बिताए,
यादें बनकर रह जाएंगी।

राहें नयी होंगी बातें नई
दिल में मगर हैं फाँसें कई
संग सजी थीं जो गलियां,
यादें बनकर रह जाएंगी।

जीवन का ये नया चरण,
बीते समय के सब प्रकरण
पुरानी किताबें पुरानी शराब,
यादें बनकर रह जाएंगी।

आगे बढ़ने की चाह भी है,
मन में दबी एक आह भी है,
तुम्हारा प्यार और सत्कार
यादें बनकर रह जाएंगी।

अलविदा तो एक दस्तूर है
दिल्ली कहाँ ज़्यादा दूर है
बातों से बातों में बातें सब
यादें बनकर रह जाएंगी

चाय की मलाई

मलाई तो मलाई है सबने ही खायी है
मुझे भी पसंद बहुत वैसे तो मलाई है
पर क्यों मलाई चाय पे पड़ आई है
धोखे से चाय के घूंट में चढ़कर
होठों से लटक कर गले तक आयी है
चाय की मलाई तू किस काम आयी है

होठों से लटके तू मुंह आप झुक जाए
बूंद टपके सीधे कपड़ों पर गिर जाये
बेचारे बन्दे को कुछ समझ न आये
किस विधि मलाई को अंदर ले जाए
जिस गले पड़ी उसने आँख न मिलाई है
चाय की मलाई तू किस काम आयी है

चाय की चुस्की का रास्ता तू रोके
सनम बेवफा सी दे जाती है तू धोखे
किसी किताब में ज्ञान नहीं न गुरुमंत्र
साफ़ कैसे करे तुझे कोई कैसे पोंछे
रुमाल के काबू में भी तू नही आई है
चाय की मलाई तू किस काम आयी है

चाय तो महफ़िल की शान होती है
अच्छे संस्कार की पहचान होती है
वक़्त बेवक्त तू होठों से चिपककर
बोलते की बोलती बंद कर देती है
चौड़े में तू खिल्ली उड़वाती आई है
चाय की मलाई तू किस काम आयी है