तुम झुठे मैं मक्कार

चलो दोनों बहस करते हैं
आओ हम बहस करते हैं
तीसरे को पकड़ते हैं
और थोड़ा झगड़ते है

दो बातें तुम कहना
दो बातें मैं करूँगा
तुम मेरी सी कहना
मैं तुम्हारी सी कहुंगा

चलो बहास करते हैं
ज्ञान वर्षा करते हैं
तीसरे के इस तरह
हम कान भरते हैं

झुठा यह संसार है
या झूठ का संसार है
सच कायम नहीं रहता
झुठ के पाँव नहीं होते

टाइम पास करते हैं
चलो बहस करते हैं

तुम राम की कहो
मैं रहमान की कहूंं
तुम दीपावली बोलो
मैं रमजान की कहूंगा

तुम झुठे मैं मक्कार
चलो बहस करते हैं
मूर्ख तीसरे को कहते हैं

चलो बहस करते हैं
आओ बहस करते हैं

बात की बात

मामुली सी एक थी बात
पहले चली फिर खतम हो गई
बातों बातों में ही एक बार
बात फिर से शुरू हो गई
बात में से बात जब
सामने आई तो हद हो गई
फिर बातें चली तो
बात की फिर सुलझ हो गई
सब मान गए जब
बात फिर खत्म हो गई
एक बात कहूं से
मुई बात फिर शुरू हो गई

उम्मीद रखो..

उम्मीद से ज़िंदा सब हम हैं
उम्मीद पे दुनिया कायम है
उम्मीद से थी माताजी जब
जग में प्रगटे हम तुम हैं

उम्मीद का दमन थाम के ही
चलते आए हैं अब तक हम
जो छोड़ दिया उम्मीद को
क्या श्वास भी लेने पाएंगे हम

है श्वास अगर विश्वास भी है
विश्वास है तो भगवान भी है
ईश्वर पर गर विश्वास करो
उम्मीद पे भी विश्वास रखो

अदरक का स्वाद

इंसां जिसने ने सब हज़म कर लिया
जिसकी भुख का कहर खत्म नहीं होता
कहता है कुत्ते को घी हजम नहीं होता

कुत्ता क्या सारी धरती पर कर लिया कब्ज़ा
यहाँ तक कि जंगल भी कर डाले हैं आबाद
कहता है बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद

बन्दर समंदर नदी नाले पहाड़ सब जीत लेगा
यहाँ तक की मंगल पर भी पानी खोज लेगा
मगर नहीं पता कि ऊंट किस करवट बैठेगा

ऊँट पर बैठता है ज़िक्र करता है जहाज़ का
खुदा के इस बंदे को नहीं पता इस बात का
कि धोबी का कुत्ता घर का है या घाट का

घाट घाट का पानी पीकर खुद घूमता है
बैर रखता है दग़ा देता है दोस्ती में रोज़ ही
मंज़ूर नहीं है मगर सांप छंछून्दर की दोस्ती

छंछूदर के सर में चमेली का तेल देखा है
जो रोज़ ही किसी न किसी को चूना लगाय
इलज़ाम देता है कि अंधी पीसे कुत्ता खाये

DEEP WITHIN ME

WHEN

PROBLEMS WERE ALL AROUND

AND SOLUTIONS WERE RARE

WHEN

THE DESTINY ACTED ADVERSE

AND SYSTEM BEHAVED CURSE

WHEN

NO ONE WAS TO SUPPORT

ALL DREAMS TURNED HAVOC

WHEN

FRUSTRATION MULTIPLIED

ANXIETY GATHERED HEIGHT

WHEN

THE STORMS ROARED

LIGHTENING FLASHED

RAINS SMASHED

DEEP WITHIN ME

THEN BLOSSOMED WAS

MY SWEET LITTLE POEM

हम तुम..

मैं देखता हूँ तुम दौड़ती हो
मुझे देख के नज़रें फेरती हो
जिस पर से नजरें हटें नहीं
ऐसा सुंदर मुखड़ा हो तुम
टूट के जैसे बिखर गया
हो बासमती का टुकड़ा तुम

सिमटी सिमटी कोमल काया
मुख पर है गोरवर्ण छाया
कद काठी से कुछ नाटी हो
सुंदर अति रूप का है पाया
जिसको सुनने का दिल चाहे
किसी गरीब का दुखड़ा तुम
टूट के जैसे बिखर गया
हो बासमती का टुकड़ा तुम

हम लाख एक दूजे को टालें
किस्मत संजोग बनाती है
किसी न किसी बहाने से
दोनों को रूबरू लाती है
हर अवसर पर जो मधुर लगे
हो ऐसे गीत का मुखड़ा तुम
टूट के जैसे बिखर गया
हो बासमती का टुकड़ा तुम

क्या चाहते हो

जब मिलते हो और मुस्कुराते देते हो
राम कसम तुम मेरा दिन बना देते हो
अपने ज़ज़्बात मैं जो कहना चाहुं तुमसे
सुनते तो हो मगर हंसी में उड़ा देते हो
तुम्हारी आँखें बताती हैं कि कुछ तो है
वार्ना क्यों हमें तुम हर राज बता देते हो
कभी रूठ जाते हो यूं ही बातों बातों में
हम रूठें अगर तो कसम खिला देते हो
तुम्हारी हर बात से हमें अच्छे लगते हो
तुम चाहते हो हमें क्यों नहीं बता देते हो

वो है न..

स्टेशन के बाहर खड़ा एक बच्चा रो रहा था
रेल से बीच सफर में वो उतर जो गया था

रो रहा था की वो अब आखिर कहाँ जाऊं
किससे पूछूं मैं और किसको सहारा बनाऊं

भूल गया था की वो एक समय ऐसा भी था
जब कुदरत ने उसे दुनिया में ला दिया था

तब तो बेबस और लाचार हुआ करता था
वो खुद को हिला ने के भी काबिल नहीं था

एक ताक़त ने तब उसको सहारा दिया था
जब वो पड़ा लाचार भूख से बिलख रहा था

तो क्यों न अब कोई उसका हाथ थाम लेगा
एक और नए सफर में उसको पनाह देगी

वो परवरदिगार है न रख खुद पर भरोसा
तेरा साथ देगा तुझे कभी भटकने न देगा

ये बातें खुद से कहकर बच्चा मुस्कुराया
एक नए मनोबल से उसने कदम बढ़ाया

सुदामा का संताप

बहोत दिना है गए सखा के धाम सुदामा सोच रह्यो

मिलौ ऐसो सत्कार कि सुध घर की मैं बिसराय गयो

मन की व्यथा रही मन ही में कान्हा ते कह ना सक्यो

का मोन्ह ले अब जाऊं सुदामा व्याकुल चिंता में परयो

रही बामनी देत ​​उल्हाने घर में न शेष अनाज के दाने

भिक्षा मांग पूरो नाय पायो रीते हाथ पठायो सखा ने

कासे कहूं उदगार मन ही मन कर मन संताप रह्यो

बहुत दिना है गए सखा के धाम सुदामा सोच रह्यो

गांम में जर्जर परी झौंपड़ी कटुंब भोजन कुं तरसे

पाँव में है जाएँ घाव पन्हा बिन बालक निकलें घर तें

कोई सुख दीन्हो नाय कहाँ मर जांय स्वयं ही कोस रह्यो

बहोत दिना है गए सखा के धाम सुदामा सोच रह्यो

कोटा में मामा का घर

कोटा में मामा का घर
मामा के घर की छत पर
बैठा मैं कुर्सी पर
सोच रहा हूँ

बादल काला सर पर
कुछ बूंदें बरसाकर
चल दिया तरसाकर
मैं देख रहा हूँ

खाली मैं मन खाली
लगता बादल खाली
इतनी बस खुशहाली
सोच रहा हूँ

क्या बादल सुख का
फिर से आएगा
क्या सूना मन मेरा
सूना रह जाएगा

यह थी उधेड़बुन
बैठा मैं था गुमसुम
बारिश का तब रेला
आया झमाझम

कोटा में मामा का घर
घर की छत तरबतर
भीगा तन भीगा मन
दिल में उमंग

जी भर नहाया मैं
मामा की छत पर
लहराया बादल भी
सर के ऊपर

मैंने हाथ जोड़े तब
कहा हे ईश्वर
कैसे तुम करते हो
सब की फ़िक़र

मन अब गदगद है
धन्यवाद कहता है
हाथ यूँ ही रखना
सबके सर पर