अपने शर्माजी थे नंबर एक पियक्कड़
बॉडी थी सूखी हड्डियों में थी अकड़
यहाँ वहां कहीं भी पीकर लुढ़क जाते
घरवाले उनको फिर खचेड़ ले आते
लुढ़कते जब वो बोतलें लुढ़क जातीं
नाचती रहती कोई कोई टूट जाती
एक रोज़ यारो अनहोनी सी हो गयी
लुढ़के शर्माजी और डेथ हो गई
खबर से दुःख की लहर दौड़ गयी
मयखाने में डबल लाइन लग गयी
बोतलें दुखी और सब तन्हा हो गयीं
कबाड़ी के शौक का सामां हो गयीं
एक मुंहलगी थी बोली बड़े अच्छे थे
पत्नी से ज़्यादा वो मेरे संग रहते थे
पीते थे जब सबको लुढ़का देते थे
मेरी तो बहन बस रेल बना देते थे
क्या बताऊँ कलेजा मुंह को आता है
एक पेग लुंगी मुझको रोना आता है
चूड़ी तोड़ लेती मैं इतनी सगी थी
शर्मा जी निकल गए मैं न लड़ी थी
ऐसा प्यार था तो अब क्या करोगी
कब तक यों मुंह लटकाये रहोगी
अपने काम से कभी दग़ा न करुँगी
शर्मा गया है अब गुप्ता को धरूंगी
नशा है शराब कहे नाचती बोतल
वर्ना यूँ ही क्यों लुढक जाती बोतल