जितने पाँव पसारेगा तू
उतना ही पछतायेगा
इतनी बस औकात तेरी
खाट में सिमट जाएगा
जिस रोज़ बुलावा आएगा
एक मटकी में आ जायेगा
फिर संग मटकी के प्यारे
तू मिट्टी में मिल जाएगा
हल्का होकर चल बन्दे
सर पर बोझ क्यों ढोता है
दुनिया की इस चकाचौंध में
अपना आप क्यों खोता है
तुझसे पहले दुनिया में
शाहे कलंदर आये थे
जुल्मो सितम से दुनिया
जीती फूले नहीं समायें थे
वक़्त आखिरी पछताए
कुछ साथ न लेने पाए थे
हल्का होकर चल बन्दे
सर पर बोझ क्यों ढोता है
दुनिया की इस चकाचौंध में
अपना आप क्यों खोता है