ये क्या माज़रा है

कुछ दिनों से दिल का मिज़ाज़
हमें समझ नहीं आता है
भटकता रहता था अब जहाँ
जाता है रम जाता है

क्या ख्याल है क्या यह
बढ़ती उम्र का तकाज़ा है
आप क्या कहते हो आखिर
ये क्या माज़रा है

कितनी तितलियाँ पकड़ीं
हमने जाने कितनी छोड़ीं
सबसे दिल लगाया की
मोहब्बत थोड़ी थोड़ी
एक अदद तितली के संग
बस जाने को जी चाहता है

कुछ दिनों से दिल का मिज़ाज़
हमें समझ नहीं आता है
भटकता रहता था अब जहाँ
जाता है रम जाता है

क्या ख्याल है क्या यह
बढ़ती उम्र का तकाज़ा है
आप क्या कहते हो आखिर
ये क्या माज़रा है

नियम कायदे कहाँ ये सब
अपने लिए होते थे
रात को थे करते हुड़दंग
दिन में तानकर सोते थे
खाना पीना यारों के संग
मस्तियाँ करना
सब छूटने लगा है दिल
अब ठहरना चाहता है

कुछ दिनों से दिल का मिज़ाज़
हमें समझ नहीं आता है
भटकता रहता था अब जहाँ
जाता है रम जाता है

क्या ख्याल है क्या यह
बढ़ती उम्र का तकाज़ा है
आप क्या कहते हो आखिर
ये क्या माज़रा है

छोटी छोटी बातों पर हम
लड़ जाय करते थे
अच्छे अच्छों से बाबू
अकड़ जाया करते थे
अब जाने देते हैं गुस्सा
अब कम ही आता है

कुछ दिनों से दिल का मिज़ाज़
हमें समझ नहीं आता है
भटकता रहता था अब जहाँ
जाता है रम जाता है

क्या ख्याल है क्या यह
बढ़ती उम्र का तकाज़ा है
आप क्या कहते हो आखिर
ये क्या माज़रा है

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