विजयदशमी

कल कॉलोनी में रावण फिर जल गया
राख और कचरे के ढेर में बदल गया
कल कॉलोनी में रावण फिर जल गया

लाल आँखें गाल पिचके बड़ा सा चेहरा
खड़ा होने से लाचार लोगों का था पहरा

लोगों की भीड़ ने उसे पकड़ रखा था
रस्सियों में बाँध उसे कैद कर रखा था

मैं ने देखा था उसे उसका मन नहीं था
थक गया था उसमें बाकी दम नहीं था

मिन्नतें करता था वो कि अब बस करो
सदियों से जला रहे हो कुछ रहम करो

मैं पापी तुम्हारे पापों का ठीकरा हूँ
छोड़ दो मांग जान की भीख रहा हूँ

खड़ा होने की मुझमें ताकत नहीं है
पाप और ढोने की हिम्मत नहीं है

हमें तो मगर विजयदशमी मनानी थी
हमसे बुरा कौन ये तस्वीर दिखानी थी

वो रोता रहा चीखता चिल्लाता रहा
नीचे से बांस डालकर उसे टांग दिया

जलते तीर से वो शोलों में बदल गया
राख और कचरे के ढेर में बदल गया

हमसे बुरा रावण कल फिर जल गया
धुआं, कचरा, छोड़कर निकल गया
कल कॉलोनी में रावण फिर जल गया

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