शरारत

आज बादलों ने फिर से डेरा जमा लिया है
नहीं जाने देंगे मुझको मन बना लिया है

देखे जो बादल काले छतरी सिमट गई है
अरे बाप रे ऐसी बारिश मैंने देखी नहीं है

सूरज का उजाला बिस्तर समेट रहा है
काल आऊंगा कहकार मुंह फेर रहा है

हवा चलने से घर के दरवाज़े बज रहे हैं
दादाजी बच्चों को गालियां दे रहे हैं

सोते नहीं हैं साले सोने भी नहीं देते
आंख अभी लगी है मरने भी नहीं देते

लो बूंद गिरी, अब झड़ी लगने को है
मेरे इरादे की खाट खड़ी होने को है

वापस हो लो भैया नहीं बहादुरी दिखानी
कीचड़ में फिसलकर नहीं लुटलुटी लगानी

मैं लौट कर के वापस ज्यों ही घर आया
हवा के थपेड़े ने बादलों को धमकाया

तम्बू लपेटकर ये लो भागते दिखें बादल
आसमां हुआ साफ मुझे बना गए पागल

ऐसी शरारत यारो बरिश में ही मिलती है
सर्दी और गरमी तो मुंह फुलाये रहती हैं

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