अलविदा

कुछ चलता है मन के भीतर
ज़ज़्बात हिलोरें लेते हैं
कुछ क़दमों को है खींच रहा
जब तुम से विदा हम लेते हैं

जब घडी बिछड़ने की आई
मन में हलचल सी छाई
साथी, संग, सहकर्मी सब,
यादें बनकर रह जाएंगी।

वो मीठी बातों की गोली,
काम के संग हंसी-ठिठोली,
पल जो सारे संग बिताए,
यादें बनकर रह जाएंगी।

राहें नयी होंगी बातें नई
दिल में मगर हैं फाँसें कई
संग सजी थीं जो गलियां,
यादें बनकर रह जाएंगी।

जीवन का ये नया चरण,
बीते समय के सब प्रकरण
पुरानी किताबें पुरानी शराब,
यादें बनकर रह जाएंगी।

आगे बढ़ने की चाह भी है,
मन में दबी एक आह भी है,
तुम्हारा प्यार और सत्कार
यादें बनकर रह जाएंगी।

अलविदा तो एक दस्तूर है
दिल्ली कहाँ ज़्यादा दूर है
बातों से बातों में बातें सब
यादें बनकर रह जाएंगी

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