कोटा में मामा का घर
मामा के घर की छत पर
बैठा मैं कुर्सी पर
सोच रहा हूँ
बादल काला सर पर
कुछ बूंदें बरसाकर
चल दिया तरसाकर
मैं देख रहा हूँ
खाली मैं मन खाली
लगता बादल खाली
इतनी बस खुशहाली
सोच रहा हूँ
क्या बादल सुख का
फिर से आएगा
क्या सूना मन मेरा
सूना रह जाएगा
यह थी उधेड़बुन
बैठा मैं था गुमसुम
बारिश का तब रेला
आया झमाझम
कोटा में मामा का घर
घर की छत तरबतर
भीगा तन भीगा मन
दिल में उमंग
जी भर नहाया मैं
मामा की छत पर
लहराया बादल भी
सर के ऊपर
मैंने हाथ जोड़े तब
कहा हे ईश्वर
कैसे तुम करते हो
सब की फ़िक़र
मन अब गदगद है
धन्यवाद कहता है
हाथ यूँ ही रखना
सबके सर पर