अच्छी खासी गोभी थी मैं
रूप से कितनी गोरी थी मैं
घर लाये जैसे दुल्हन थी मैं
पता नहीं था दुश्मन थी मैं
गोरी गोरी मेरी चमड़ी को
खुरच खुरच उतार दिया
गब्बर समक्ष बसंती जैसे
तुमने मुझे तार तार किया
डंठल जो मेरे गहने थे
माँ के हाथ से पहने थे
बेदर्दी से तुमने सब को
एक एक कर उतार दिया
गजब हसीन कमसिन थी मैं
पता नहीं था दुश्मन थी मैं
चाक़ू से जब मुझको काटा
तुम्हें ज़रा दर्द नहीं आया
आलू के संग कढ़ाई मैं
गरम तेल मैं तलवाया
नमक मिर्च हल्दी धनिया
मेरे टुकड़ों पर बिखराया
तुमको तेल लगा कर कोई
गरम तेल मैं लिटाये तो
क्या हालत तुम्हारी होगी
ज़रा मुझे बताओ तो
बर्बाद हूँ अब चमन थी मैं
पता नहीं था दुश्मन थी मैं
अच्छी खासी गोभी थी मैं
रूप से कितनी गोरी थी मैं
घर लाये जैसे दुल्हन थी मैं
पता नहीं था दुश्मन थी मैं