मुफ्त का भोजन बंट रहा था
बांटता हाथ गर्व कर रहा था
जो दानी का दाहिना हाथ था
एक गर्दन अकड़ी खड़ी थी
सामर्थ्य दम्भ में जकड़ी थी
एक पेट था जो अभी भरा था
खाना खाकर सुस्ता रहा था
हवस ने मगर उसे उठा दिया
क्या करना है उसे बता दिया
जो डकार लिया है अपना है
कल तो प्यारे एक सपना है
भूख खाना खाने से मिट जाती है
हवस को पृथ्वी कम पड़ जाती है