एक रोज़ जब रिटायर हो जाऊंगा मैं
पहले तो खुद को होश में लाऊंगा मैं
दशकों गुलामी की जो आदत लगी है
उस आदत से छुटकारा पाऊंगा मैं
एक रोज़ जब रिटायर हो जाऊंगा मैं
घड़ी के काटों से डरता हूँ मैं अभी
कच्ची नींद से उठ जाता हूँ मैं अभी
सोम से शुक्र के पिंजरे का परिंदा हूँ
तोड़ कर पिंजरा अब उड़ जाऊँगा मैं
एक रोज़ जब रिटायर हो जाऊंगा मैं
चालीस सालों का वनवास गुज़ारा है
घर से दूर रहा अज्ञातवास गुज़ारा है
खुद के लिए कभी फुर्सत नहीं मिली
वक्त अब मेरा है सबको बताऊंगा मैं
एक रोज़ जब रिटायर हो जाऊंगा मैं
दिन आज़ादी के अब बिताऊंगा मैं
पंख जो टूटे हैं उनको फैलाऊंगा मैं
खुली हवा में गहरी अब सांस लूंगा
sair
एक रोज़ जब रिटायर हो जाऊंगा मैं