काया से कमज़ोर आंखों से कम ही देख पाती थी
जां में आती थी जान जब अम्मा सामने आती थी
किताबें की कम मगर ज़िन्दगी की पूरी समझ थी
रिश्ते नातों में तो अम्मा ने पीएचडी कर रखी थी
मामा चाचा बुआ भतीजे रिश्ते सभी निभाती थी
जां में आती थी जान जब अम्मा सामने आती थी
टीवी नहीं था हमें मगर रोज परियों से मिलवाती थी
बचपन में अम्मा लोरी और कहानियां सुनाती थी
पापा के गुस्से से अक्सर अम्मा ही बचाती थी
जां में आती थी जान जब अम्मा सामने आती थी
भोर अँधेरे हम सोते मगर अम्मा जग जाती थी
अंगीठी सुलगा कर घर के सब काम बनाती थी
खाने में इतना स्वाद न जाने कहाँ से ले आती थी
जां में आती थी जान जब अम्मा सामने आती थी
हम बच्चे बड़े हो गए ममता मगर कायम रहती
दिन ढले सब आ जाएँ अम्मा इंतज़ार करती रहती
थकान गायब हो जाती जब सर पे हाथ फेर जाती थी
जां में आती थी जान जब अम्मा सामने आती थी
छोटी खुशियां भी त्यौहार लगतीं जब अम्मा साथ थी
घर में सब अपने हैं अम्मा की मगर अलग बात थी
छोटी सफलताओं को भी अम्मा ऑस्कर दे जाती थी
जां में आती थी जान जब अम्मा सामने आती थी
अम्मा की नगरी में हर संतान रानी और राजा है
अम्मा की फूंक से हर दर्द काफूर हो जाता है
दिल की परतों में अम्मा आज भी ढांढस बंधाती है
आती है जां में जान याद जब अम्मा की आती है