ठण्ड रखो

गरमी गदर मचा गई थी
वर्षा भी कहर ढा गई थी
पानी की ठंडक में मैंने
ठण्ड से मुलाक़ात की
कई मुद्दों पर बात की

कहा ठण्ड मौसी इस
बार तुम ठण्ड रखोगी
या गरमी और बारिश
मौसी की तरह सबको
ठंड से झकझोर दोगी

मौसी बोली भैया सुन
हम तीनों बहनें हैं पर
में उनसे कम नहीं हूँ
बरिश दीदी बड़ी हैं
वो मेरा साथ देती हैं
उनकी इज्जत करती हूं
मगर गरमी से मेरी तो
ज़रा भी नहीं बनती है
इसलिए चुप न बैठूंगी
जैसा वो गर्मी करेगी मैं
उससे ज्यादा करुँगी

उसने अगर तुम् सबके
पसीने निकलवा दिए हैं
में हीटर निकलवा दूंगी
निकालोगे क्या तुम्हारे
सबके गले में टंगवा दूंगी

मैंने कहा मौसी रहम करो
इतना तो ज़ुल्म मत करो
अभी से तुमने पानी को
ठंडी तलवार बना दिया है
बॉडी को नहाते हुए कई
जगहों से गला दिया है

और कहो ठण्ड मौसी
बाकी समाचार कैसे हैं
सूरज मौसाजी कैसे हैं
लाला इसी का रोना है
बारिश से तो डरते हैं
गर्मी के ही संग रहते हैं
मैं उन्हें देख कर पिघल
जाती हूँ पर वो हमेशा
मुझ से छिपते फिरते हैं
अब भी देखना कोहरे
के वो पीछे छुपे बैठे हैं

मैं अब कर क्या सकती हूं
इस उमर में तलाक भी
नहीं मैं ले सकती हूं न
मैं कब का चली जाती
मगर बारिश के भरोसे
ही बस मैं तो टिकी हूँ

कहते कहते उनके आंसू
ओले बनकर बहने लगे

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