कहा मैंने एक दिन भिंडी से
क्यों जलते तवे पर लेटी हो
तन्हा फ्राई हो रही हो ऐसे
घर क्यों नहीं बसा लेती हो
रिश्ते इतने ठुकराए तुमने
भाव क्यों नहीं तुम देती हो
अच्छे घर के सब लड़के हैं
शादी क्यों नहीं कर लेती हो
हालत ज़रा देखो तो अपनी
चाकू से कैसे कटवाया है
गैरों से लगाया दिल तुमने
धोखा ही तो सिर्फ खाया है
एक चांस देकर अपनों को
सेटल क्यों नहीं हो लेती हो
गरम तवे पर लेटकर यूँ
खुद को सजा क्यों देती हो
अच्छे घर की लगती हो तुम
लेडी फिंगर कहलाती हो
सुंदर स्लिम बदन पर क्या
बालों से उकता नहीं जाती हो
इस वीकेंड पर जाकर तुम
क्यों नहीं वैक्सिंग करा लेती हो
सब्ज़ी देखकर पसंद की कोई
क्यों हाथ थाम नहीं लेती हो
आलू टमाटर तुम्हें देखकर
दूर से आहें भरते रहते हैं
भाव नहीं देती तुम उनको
करीब आने से वो डरते हैं
हर सब्जी लट्टू तुम पर है
हाँ क्यों नहीं कह देती हो
इतनी अकड़ सही नहीं है
क्या किसी नवाब की बेटी हो
भिंडी बोली चुप कर भूतिये
तुझे इश्क़ का है खाक पता
दो कौड़ी का तू कवि है
ज़्यादा न मुझसे जुबान लड़ा
शौक़ नहीं है मुझको जो
जलते तवे पर आ लेटी हूँ
आलू टमाटर के चलते ही
मैं इस हालत में मैं पंहुची हूँ
मुझ पर भी जवानी छाई थी
दिल मेरा एक दिन धड़का था
मुझे चाहने वाला आशिक़
गबरू हरा एक लड़का था
दानेदार बदन उसका था
लाखों में वो एक अकेला था
दिल मेरा लुभाने वाला सुन
हैंडसम वो एक करेला था
ख्वाबों में अब भी आता है
जब आंखें बंद कर लेती हूं
ये बात किसी से मत कहना
वर्ना ….. मैं बताये देती हूँ
हम दोनों चोरी चोरी जब
छिप छिप कर मिलते थे
आलू टमाटर दोनों भड़वे
सब बातें सुनते रहते थे
खुद दोनों ही आवारा हैं
मज़ाक हमारा बना डाला
गाँव में हमारे रिश्ते का
भंडाफोड़ करवा डाला
अब भी सिहर जाती हूं मैं
मंजर वो याद कर लेती हूं
चाकू और तवे से खुद को
सजा दिलवाती रहती हूं
फ्राई हो चुकी थी भिंडी अब
फुट फूटकर कर रोने लगी
दि एंड जानने की मेरे भी
बदन में खुजली होने लगी
आंसु पोंछकर भिंडी बोली
करेले को सबने कटवा डाला
पेट काटकर मसाला भरकर
भरवां करेला बनवा डाला
कड़वा हो गया तब से करेला
फिर भी लोगों ने खा डाला है
पेट काट काट कर गरीब ने
अपने बच्चों को पाला है
हम दोनों फिर कभी नहीं मिले
बस यादों में दोनों मिल लेते हैं
चाक़ू से कटवा कर खुद को
फ्राई तवे पर हम हो लेते हैं
जो मैं इतना जानती प्रीत किये फ्राई होये
नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोय