खिली खिली सी सुबह में
खिला खिला सा मेरा मन
मंद हवा के झोंकों से
इठलाते उपवन में सुमन
अँधेरे से लड़ते झगड़ते
रौशनी बिखराती किरणे
उम्मीद जगाती पूर्ण करें
सपने देखे जो हमने
रोज़ शाम थका देती है
सुबह जीवन भर देती है
हर मुंह को दाना देने
दिनचर्या चल देती है
उसकी मर्ज़ी के बिना
एक श्वास संभव नहीं
दिन है तोहफा उसका
हम यह बिसराएँ नहीं
दिन ये हमारा है आओ
लिख डालें ताबीर नयी
मानव हैं हम मानव के
मानस का कर्त्तव्य यही
खिली खिली सी सुबह में
खिला खिला सा मेरा मन
मंद हवा के झोंकों से
इठलाते उपवन में सुमन