बोलियां

सावन का महीना फुहारें पढ़ती हलके हलके
हम गुज़रें जब गली में मिलते हैं दीवाने लड़के

लड़के आशिक़ हैं आवारा नहीं बस मनचले हैं
एक इशारा करो तो दिखा देंगे हम जान देके

जां का क्या करना है देना है तो दिल दे दो
मान जाएंगे आम जो ला दो पेड़ पर चढ़के

हमारी चाहत आज़मा लो देखो हम आ गए
चाहा हमने जिनको डिप्टी कलेक्टर हो गए

ऐसे तेवर थे आपके एक बार पूछ लेते बाप से
डिप्टी कलेक्टर वो होते चर्चे भी होते आप के

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