सफर तुम्हारा है
दिन तुम्हारा है
वक्त तुम्हारा है
किसी को फिर क्या दिखाना है
सजन घर जाना है
तो सज कर ही जाना है
सुबह के लिए चलो द्वार खोल दो
वक़्त के कानों में ललकार घोल दो
आज का दिन अच्छा गुजरा
शाम को विश्वास दिलाना है न
किसी को फिर क्या दिखाना है
सजन घर जाना है
तो सज कर ही जाना है
कौन क्या कहता है क्या गरज़
तू निभाता चल बस अपना फ़र्ज़
लोगों को काम ही है कहना
उनकी की बातों का क्या ठिकाना है
जो चलता है उसके पीछे ज़माना है
किसी को फिर क्या दिखाना है
सजन घर जाना है
तो सज कर ही जाना है
आज़माने मंज़िल दूर सही
इंसां हदों से मजबूर सही
एक पत्थर उछालना है
निशाना आसमां को बनाना है
छेद हो जाए तो ठीक
वर्ना अपना क्या ही जाना है
किसी को कुछ क्यों बताना है
सजन घर जाना है
तो सज कर ही जाना है