तीखी बात का तीर चला
दृष्टिकोण को बेध गया
विचारों के समंदर में
झांझावत सा उठ गया
हलचल तल तक पहुंची
क्रोध विकार घुलने लगा
रक्त प्रदूषित हुआ
खून का दौरा तेज़ हुआ
सांस उखड़ने लगी
जोर से दिल धड़कने लगा
सद्विचार हुए मलिन
मस्तिष्क बागी हो गया
कड़वी बात से बाँध सब्र का
तिनके जैसा बह गया
सामने वाला भी चकित
जिह्वा से क्या निकल गया
हुई आंख लाल नथुने फुले
त्यौरी अम्बर छूने लगी
हाथ पैर असमंजस में
करे क्या और क्या नहीं
बिजली कोंधी तभी एक
मश्तिश्क से.ऑर्डर हुआ
हाथ पैरो ने दे चटाक
लात और झापड़ जड़ दिया
लज्जित फिरता है शरीर
आंख मिला नहीं पाता है
फेर कर मुंह निकल जाता है
जब सामना हो जाता है
शब्द तीर बड़े घातक हैं
रखिये इनमें महारथ जी
बात बने तो रामायण है
बिगड़ी बात महाभारत जी