भूख का दानव

माँ सोई थी बच्चे ने जगाया
माँ मुझको है भूख लगी
माँ ने झटक दिया उसको
सुबह की नींद बड़ी गहरी

सुबह लगी थी होने भूख से
जागने का अब समय हुआ
बच्चा जगा रहा माँ को
सहमा सहमा डरता डरता

माँ और बच्चा जब जग गए तो
पूंछ हिलाकर पिता उठा
खींच एक अंगड़ाई ली और
खतरे को उसने सूँघा

बच्चा चंचल खेलने भागा
माँ उसके पीछे दौड़ी
सोचकर किअभी छोटा है
चोट न लग जाए कहीं

पिता सूंघते सूँघते आकर
बड़ी सड़क पर फ्रेश हुआ
माँ बच्चे को साथ देख कर
मन ही मन संतुष्ट हुआ

भूख लगी थी तीनों एक
घर के आगे जमा हुए
किसी भलेमानस से खाना
मिल जाने की आस लिए

एहसास था शायद फरिश्ता
घर से बाहर आएगा
उनकी और बाकी कुत्तों की
भूख शांत करवायेगा

आस में यारो लार टपकती
पुंछः स्वयं हिल जाती है
समय पे जो काम आ जाये
उसे स्वामीभक्ति मिल जाती है

निकला भलामानस घर से
सब कुत्ते पीछे चल दिये
भूख के दानव का वध करने
संग अपना अवतार लिए

आँखों में थी चमक गजब
उत्साह देखते बनता था
पूंछ नाचती लार टपकती
पुर्जा पुर्जा हिलता था

जितना मारो भूख का दानव
फिर जीवित हो जाता है
पेट में रहकर तीनों पहर
यह कोहराम मचाता है

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