स्टेशन के बाहर खड़ा एक बच्चा रो रहा था
रेल से बीच सफर में वो उतर जो गया था
रो रहा था की वो अब आखिर कहाँ जाऊं
किससे पूछूं मैं और किसको सहारा बनाऊं
भूल गया था की वो एक समय ऐसा भी था
जब कुदरत ने उसे दुनिया में ला दिया था
तब तो बेबस और लाचार हुआ करता था
वो खुद को हिला ने के भी काबिल नहीं था
एक ताक़त ने तब उसको सहारा दिया था
जब वो पड़ा लाचार भूख से बिलख रहा था
तो क्यों न अब कोई उसका हाथ थाम लेगा
एक और नए सफर में उसको पनाह देगी
वो परवरदिगार है न रख खुद पर भरोसा
तेरा साथ देगा तुझे कभी भटकने न देगा
ये बातें खुद से कहकर बच्चा मुस्कुराया
एक नए मनोबल से उसने कदम बढ़ाया