हम तुम..

मैं देखता हूँ तुम दौड़ती हो
मुझे देख के नज़रें फेरती हो
जिस पर से नजरें हटें नहीं
ऐसा सुंदर मुखड़ा हो तुम
टूट के जैसे बिखर गया
हो बासमती का टुकड़ा तुम

सिमटी सिमटी कोमल काया
मुख पर है गोरवर्ण छाया
कद काठी से कुछ नाटी हो
सुंदर अति रूप का है पाया
जिसको सुनने का दिल चाहे
किसी गरीब का दुखड़ा तुम
टूट के जैसे बिखर गया
हो बासमती का टुकड़ा तुम

हम लाख एक दूजे को टालें
किस्मत संजोग बनाती है
किसी न किसी बहाने से
दोनों को रूबरू लाती है
हर अवसर पर जो मधुर लगे
हो ऐसे गीत का मुखड़ा तुम
टूट के जैसे बिखर गया
हो बासमती का टुकड़ा तुम

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