महबूब के सपने

रेलगाड़ी की खिड़की से बाहर जो देखा
वक्त रात का था हर ओर पसरा अँधेरा

मैंने नज़र दौड़ाई तो चाँद नज़र आ गया
बिछड़ा गया था कभी आज याद आ गया

मैंने कहा चलो हम फिर से मिल लेते हैं
पहले नहीं हो पाया अब शादी कर लेते हैं

उसकी रजामंदी हुई और हम एक हो गए
सपने के सपने में कई सपने देख लिए

शादी हुई जब कुछ दिन सब ठीक चला
मोहब्बत में हमारी महीनों ना चाँद ढला

फिर वो शुरू हुआ जो होता है मेरे भाई
रोज़ की खिट पिट होती हर दिन लड़ाई

तू तू और मैं मैं बरतन भांडे झाड़ु पोछा
आटा दाल चावल ऑफिस का लोचा

तंग आ गया मैं इस तरह फिर जिंदगी से
घबरा कर मैं उठ गया यारो गहरी नींद से

रेलगाड़ी की खिड़की से बाहर जो देखा
चांद ने मुझको देखा और जोर से हंसा

बोला एक तो निपट दूजी करने चला है
महबूब बन जाए बीवी ये सपना बुरा है

सपने में महबूब हो महबूब के हों सपने
हकीकत की तराज़ू में मत तोलो सपने

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