मनुआ बहुत हो चुकी मन की
जा उलझा क्यों प्रीत की लत में
अब लगी झड़ी अंसुआन की
मनुआ बहुत हो चुकी मन की
मस्त तान कर सो जाते थे
कितने अच्छे वे दिन थे
दोनों साइड उतर जाते थे
बिस्तर के हम किंग थे
अब हो गई है ऐसी तैसी
बिसर गयी सुध तन की
मनुआ बहुत हो चुकी मन की
जा उलझा क्यों प्रीत की लत में
अब लगी झड़ी अंसुअन की
मनुआ बहुत हो चुकी मन की
कक्षा में अव्वल आते थे
अब फिसड्डी रह गए हैं
मातपिता की आँख के तारे
गले की हड्डी बन गए हैं
कहते थे प्रीत ना करियो
एक ना मानी उनकी
मनुआ बहुत हो चुकी मन की
जा उलझा क्यों प्रीत की लत में
अब लगी झड़ी अंसुअन की
मनुआ बहुत हो चुकी मन की
डॉक्टर हमें नहीं बनना था
हम मरीज़ पर हो गए हैं
पता नहीं तेरे लफड़े में
क्या चीज हम हो गए हैं
टूटी टांग गिर पड़ा भालू
हम हो गए हैं सनकी
मनुआ बहुत हो चुकी मन की
जा उलझा क्यों प्रीत की लत में
अब लगी झड़ी अंसुअन की
मनुआ बहुत हो चुकी मन की